छत्तीसगढ़ में एक ऐसा मामला सामने आया जिसने न्याय व्यवस्था की कमजोरी और देरी को उजागर कर दिया। यह कहानी है 89 वर्षीय जुगेश्वर प्रसाद अवस्थी की, जिन्हें 1986 में सिर्फ ₹100 की घूस मांगने के आरोप में दोषी माना गया था। उस समय वे मध्यप्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम (MPSRTC) में कार्यरत थे।
किस प्रकार फंसे बुजुर्ग
मामला तब शुरू हुआ जब जुगेश्वर प्रसाद पर आरोप लगाया गया कि उन्होंने एक अनुबंधित कर्मी से ₹100 की रिश्वत लेने के लिए ट्रैप लगाया। पुलिस ने रंगीन नोटों के साथ अवस्थी को गिरफ्तार किया। परंतु, ट्रायल के दौरान यह साबित नहीं हो सका कि वास्तव में नोट किसने और कैसे दिए। गवाहों में कोई भी यह प्रत्यक्ष रूप से नहीं कह पाया कि पैसे की मांग और उनकी स्वीकृति अवस्थी जी ने की थी।
2004 में दोषी करार
निचली अदालत ने 2004 में अवस्थी को दोषी करार देते हुए एक साल की सजा सुनाई। हालांकि, वे जमानत पर बाहर रहे और मामले की पैरवी उच्च न्यायालय तक करते रहे। इस बीच उनकी उम्र बढ़ती गई और जीवन के लगभग चार दशक न्याय की तलाश में फिसल गए।
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने दी राहत
2025 में छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने अपने निर्णय में कहा कि मामले में पर्याप्त साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किए जा सके हैं। कोर्ट ने पाया कि ट्रैप नोट मिलना ही दोष सिद्ध करने के लिए पर्याप्त नहीं है, जब तक मांग और स्वीकृति का स्पष्ट प्रमाण न हो। इसी आधार पर अवस्थी को बरी कर दिया गया। अदालत ने अपने आदेश में कहा कि गवाहों के बयान विरोधाभासी हैं और आरोप साबित नहीं हुआ है।
बुढ़ापे में टकराया न्याय
89 वर्ष की उम्र में जब व्यक्ति जीवन के शांति और सुकून की आशा रखता है, तब जुगेश्वर प्रसाद अवस्थी को व्यक्तिगत और पारिवारिक कष्टों का सामना करना पड़ा। उन्होंने अपने जीवन के सबसे महत्वपूर्ण समय सिर्फ न्याय के इंतजार में गुजार दिए। कोर्ट के बाहर अवस्थी बोले, “न्याय मिला, लेकिन जिंदगी के सबसे अहम पल खो गए।”
सीख और सवाल
यह मामला हम सबको सोचने पर मजबूर करता है—क्या हमारी न्याय प्रणाली इतनी सशक्त है कि निर्दोषों को समय रहते राहत दे सके? ऐसी घटनाएं दिखाती हैं कि सिर्फ एक मामूली आरोप भी इंसान की पूरी जिंदगी बदल सकता है। हमें न्याय प्रक्रिया में त्वरित और निष्पक्ष बदलाव की आवश्यकता है।
निष्कर्ष
जुगेश्वर प्रसाद अवस्थी की कहानी आधुनिक भारत की न्यायिक प्रणाली के लिए सबक है। सिर्फ ₹100 की रिश्वत के आरोप में किसी की पूरी जिंदगी बर्बाद हो सकती है। हर नागरिक की जिम्मेदारी है कि ऐसे मामलों में संवेदनशीलता और सजगता बनाए रखे, ताकि भविष्य में किसी निर्दोष को ऐसे संघर्ष से न गुजरना पड़े