भारत में आतंकवाद रुक नहीं पा रहा: क्या हमारी संविधानिक प्रक्रिया इसके पीछे है?
नई दिल्ली, 12 नवंबर 2025
भारत में आतंकवादी घटनाएँ समय-समय पर सामने आती रहती हैं। सुरक्षा एजेंसियों की कोशिशों और सख्त कानूनों के बावजूद, आतंकवाद पूरी तरह से खत्म नहीं हो पाया है। विशेषज्ञों का मानना है कि इसका एक बड़ा कारण हमारी संविधानिक और न्यायिक प्रक्रिया की धीमी रफ्तार भी है।
आतंकवादियों को सज़ा मिलने में लग जाता है लंबा समय
देश में कई आतंकवादी मामलों में जाँच और अदालत की प्रक्रिया वर्षों तक चलती रहती है। साक्ष्य जुटाने, गवाहों के बयान, अपील और पुनःसुनवाई जैसी प्रक्रियाएँ इतनी लंबी होती हैं कि दोषियों को सज़ा मिलने में सालों लग जाते हैं।
इस वजह से आतंकवादियों के मन में कानून का उतना डर नहीं रह जाता, जितना होना चाहिए।
कानून तो हैं, पर कार्रवाई धीमी
भारत में आतंक-विरोधी कानून जैसे UAPA (Unlawful Activities Prevention Act) और NIA (National Investigation Agency) मौजूद हैं, जो आतंकवाद से निपटने के लिए बनाए गए हैं।
लेकिन अक्सर देखा गया है कि इन कानूनों के अंतर्गत दर्ज मामलों में चार्जशीट दाखिल करने और मुकदमे चलाने की प्रक्रिया काफी लंबी हो जाती है।
विशेषज्ञों की राय
कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि भारत का संविधान नागरिकों को पूरी तरह से न्याय और अधिकारों की गारंटी देता है, लेकिन जब यह प्रक्रिया बहुत जटिल और धीमी हो जाती है, तो अपराधियों को फायदा मिल जाता है।
अगर जांच और ट्रायल की प्रक्रिया तेज़ और समयबद्ध की जाए तो आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई अधिक प्रभावी हो सकती है।
भारत ने आतंकवाद से लड़ने के लिए कई कदम उठाए हैं, लेकिन जब तक कानूनी कार्रवाई में तेजी नहीं आती और दोषियों को समय पर सज़ा नहीं मिलती, तब तक आतंकवाद पर पूरी तरह रोक लगाना मुश्किल है।
ज़रूरत है कि न्याय व्यवस्था को अधिक सशक्त और त्वरित बनाया जाए, ताकि आतंकवादियों में कानून का वास्तविक भय पैदा हो सके।