64.66% वोटिंग ने बदली चुनावी हवा – क्या लौटेगा नीतीश या आएगा बदलाव?

बिहार चुनाव 2025: 1951 के बाद सबसे ज्यादा मतदान, 64.66% वोटिंग ने रचा नया इतिहास

लोकतंत्र की धरती पर जनता का उत्सव

बिहार ने इस बार लोकतंत्र का ऐसा उत्सव मनाया है जिसने आज़ादी के बाद का पूरा चुनावी इतिहास बदल दिया। विधानसभा चुनाव 2025 के पहले चरण में 121 सीटों पर हुए मतदान में 64.66 प्रतिशत लोगों ने वोट डालकर नया रिकॉर्ड बनाया। यह आंकड़ा अभी अंतिम नहीं है, क्योंकि तीन हजार से अधिक बूथों की रिपोर्ट अभी आना बाकी है। माना जा रहा है कि अंतिम प्रतिशत इससे भी अधिक हो सकता है।

मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने इस ऐतिहासिक भागीदारी के लिए बिहारवासियों को धन्यवाद देते हुए कहा कि “यह जनता का लोकतंत्र में अटूट विश्वास दर्शाता है।”

पहली बार टूटा सात दशक पुराना रिकॉर्ड

1952 के पहले आम चुनाव से लेकर अब तक बिहार में इतने बड़े पैमाने पर मतदान कभी नहीं हुआ।
पिछले विधानसभा चुनाव (2020) में वोटिंग प्रतिशत 57.29% और 2024 के लोकसभा चुनाव में 56.28% रहा था।
इस बार लगभग 10 प्रतिशत की जबरदस्त बढ़ोतरी दर्ज की गई है।
1951 से अब तक किसी भी लोकसभा या विधानसभा चुनाव में इतना मतदान नहीं हुआ था।

रिकॉर्ड वोटिंग के पीछे क्या हैं कारण?

विशेषज्ञों के अनुसार इतनी बड़ी भागीदारी कई कारकों का परिणाम है —

  1. SIR (Special Intensive Revision) के तहत 65 लाख फर्जी, मृत या डुप्लीकेट वोटरों के नाम हटाए गए, जिससे मतदाता सूची अधिक साफ हुई।
  2. चुनाव आयोग ने ग्रामीण इलाकों तक CAPF, जीविका दीदी और महिला स्वयंसेवक तैनात किए, जिससे महिला मतदाताओं की उपस्थिति ऐतिहासिक रही।
  3. युवा और पहली बार वोट डालने वालों में अभूतपूर्व उत्साह देखने को मिला।

इन कारणों ने मिलकर बिहार के राजनीतिक इतिहास में यह असाधारण दृश्य पैदा किया — लंबी कतारों में महिलाएँ, बुजुर्ग, युवा सब अपने मताधिकार का प्रयोग करते दिखे।

क्या बढ़ी वोटिंग सत्ता-विरोध की निशानी है?

राजनीतिक पंडितों के बीच इस रिकॉर्ड वोटिंग को लेकर अलग-अलग व्याख्याएँ हैं।
कुछ इसे “सत्ता-विरोधी लहर” का संकेत मान रहे हैं, तो कुछ का मानना है कि यह जनता के सक्रिय समर्थन का प्रमाण है।

  • नीतीश कुमार के नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन के लिए यह चुनौती है, क्योंकि इतिहास बताता है कि जब-जब मतदान बढ़ा है, सत्ता में बैठे दलों को झटका लगा है।
  • वहीं, तेजस्वी यादव के नेतृत्व वाले महागठबंधन को उम्मीद है कि इस बार जनता बदलाव के मूड में है।

हालांकि, बिहार के राजनीतिक इतिहास में वोट प्रतिशत और नतीजों का रिश्ता हमेशा सीधा नहीं रहा।
उदाहरण के लिए, 2005 में नीतीश कुमार सत्ता में आए थे जब मतदान केवल 46.5% हुआ था।
इसलिए 2025 का यह रिकॉर्ड सिर्फ संख्या नहीं, बल्कि राजनीतिक पहेली भी है।

ऐतिहासिक तुलना: 1952 से 2025 तक

वर्षचुनाव प्रकारमतदान प्रतिशत
1952विधानसभा38.8%
1990विधानसभा62.04%
2000विधानसभा62.57%
2015विधानसभा56.66%
2020विधानसभा57.29%
2025विधानसभा (पहला चरण)64.66%

इस तालिका से स्पष्ट है कि बिहार की जनता ने इस बार अभूतपूर्व उत्साह दिखाया है।

अंतरराष्ट्रीय पर्यवेक्षकों की मौजूदगी

बिहार में पहली बार अंतरराष्ट्रीय चुनाव आगंतुक कार्यक्रम (IEVP) के तहत
दक्षिण अफ्रीका, इंडोनेशिया, थाईलैंड, फिलीपींस, बेल्जियम और कोलंबिया से आए 16 प्रतिनिधियों ने मतदान प्रक्रिया को प्रत्यक्ष रूप से देखा।
उन्होंने चुनाव आयोग की पारदर्शी व्यवस्था और जनता की भागीदारी की सराहना की।

राजनीतिक संदेश और संभावित असर

इतिहास गवाह है कि बिहार में हर बार जब मतदाता रिकॉर्ड तोड़ मतदान करते हैं, राजनीति की दिशा बदल जाती है।
यह वोटिंग केवल लोकतंत्र का जश्न नहीं, बल्कि आने वाले नतीजों का संकेत भी है —
क्या जनता विकास पर मुहर लगाएगी या बदलाव की पुकार सुनाई देगी, यह तय करेगा 2025 का यह ऐतिहासिक चुनाव।