चुनावी रेवड़ियाँ और बिहार की अर्थव्यवस्था: विकास के बजाय कर्ज की ओर
Bihar:- बिहार, जो कभी मगध के स्वर्णिम इतिहास और सांस्कृतिक समृद्धि से दुनिया में जाना जाता था, आज बीमारू राज्यों की परिभाषा में शामिल हो गया है। रोजगार के अभाव और उद्योगों की कमी ने इसे देश की श्रमिक राजधानी बना दिया है। पाटलिपुत्र का वैभव अब केवल इतिहास की किताबों में जीवित है, और राजधानी पटना भी विकास में पिछड़ चुकी है।
वर्तमान चुनावी मौसम में बिहार सरकार, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में, बड़े पैमाने पर मुफ्त योजनाएँ और नकद सहायता जारी कर रही है। मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना के तहत 25 लाख महिलाओं को 10-10 हजार रुपये की पहली किस्त दी गई है। योजना का दावा है कि महिलाएँ इस राशि से उद्यम शुरू करेंगी, और लाभ होने पर उन्हें 2-2 लाख रुपये अतिरिक्त दिए जाएंगे।
अभी क्या क्या मुफ़्त की योजनाओ की घोषणाओं
आंकड़ों के अनुसार, इस योजना के लिए 1.60 करोड़ आवेदन आ चुके हैं, जिसका संभावित खर्च 3.26 लाख करोड़ रुपये है—जोकि बिहार के पूरे वार्षिक बजट (3.17 लाख करोड़ रुपये) से अधिक है। यही नहीं, राज्य की सालाना आय लगभग 2.60 लाख करोड़ रुपये है, जिससे स्पष्ट है कि केवल इस योजना को फंड करने के लिए सरकार को भारी कर्ज लेना पड़ेगा।
इसके अतिरिक्त, सरकार ने कई अन्य लोकलुभावन घोषणाएँ की हैं—125 यूनिट तक मुफ्त बिजली (19,792 करोड़ रुपये), आशा वर्कर्स के मानदेय में वृद्धि (325 करोड़ रुपये), ममता वर्कर्स भुगतान वृद्धि (210 करोड़ रुपये), 50 लाख बेरोजगार स्नातकों को भत्ता (6,000 करोड़ रुपये), वरिष्ठ नागरिक पेंशन वृद्धि (13,320 करोड़ रुपये), आंगनवाड़ी वर्कर्स को स्मार्टफोन (130 करोड़ रुपये), होमगार्ड मानदेय वृद्धि (1,932 करोड़ रुपये), और पंजीकृत श्रमिकों को वस्त्र खरीद अनुदान (800 करोड़ रुपये)।
सभी योजनाओं का कुल अनुमानित खर्च 3.68 लाख करोड़ रुपये है—जो बिहार के पूरे बजट से 51,600 करोड़ रुपये अधिक और सालाना आय से 1.10 लाख करोड़ रुपये ज्यादा है। यह खर्च स्कूलों, अस्पतालों, सड़कों और औद्योगिक विकास से संसाधन छीनकर आने वाली पीढ़ियों पर कर्ज का बोझ डाल देगा।
विशेषज्ञ मानते हैं कि फ्रीबी कल्चर तात्कालिक वोटबैंक को आकर्षित करने का साधन है, लेकिन बिहार जैसी कमजोर अर्थव्यवस्था में यह दीर्घकालिक विनाश का कारण बन सकता है। स्थायी विकास के लिए रोजगार सृजन, औद्योगिक निवेश, शिक्षा और स्वास्थ्य में सुधार जैसी नीतियों की आवश्यकता है।
यदि यह प्रवृत्ति जारी रही, तो बिहार न केवल बीमारू रहेगा बल्कि “लाइलाज” आर्थिक संकट की ओर अग्रसर होगा। मगध-मिथिला-भोजपुर का गौरव केवल इतिहास में रह जाएगा, और भविष्य कर्ज के दलदल में डूब जाएगा।
नीतीश कुमार ने विकास का काम किया होता तो उनको मुक्ति की चीजों का ऐलान नहीं करना होता उन्होंने काम नहीं किया है इसी कारण मुफ्त की योजनाएं आज देनी पर रही है जिससे बिहार का अर्थव्यवस्था आने वाले समय में काफी कमजोर हो जाएगा पहले से यहां पर विकास के नाम पर कुछ नहीं है तो मुक्ति की योजनाओं से नीतीश कुमार को बचाना चाहिए