राजस्थान में कांग्रेस पार्टी के पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट के बागी तेवर अपना ने के कारण अशोक गहलोत सरकार संकट में आ गयी हैं।सचिन पायलट ने 19 विधायकों का समर्थन प्राप्त कर कहा कि अशोक गहलोत सरकार अल्पमत हैं।इस घटना से नाराज होकर कांग्रेस पार्टी ने सचिन पायलट को सभी पदों से हटा दिया और उनके 19 विधायकों की विधानसभा सदस्यता रद्द करने की सिफारिश विधानसभा अध्यक्ष के पास भेज दिया था।सचिन पायलट ने इन विधायकों की सदस्यता बरकरार रखने के लिए सुप्रीम कोर्ट में रिट लगायी। जिसपर कोर्ट ने सुनवाई करते हुए पायलट के 19 विधायकों पर विधानसभा स्पीकर द्वारा विधानसभा सदस्तयता निरस्त नहीं करने का आदेश दिया।फिर अशोक गहलोत ने 109 विधायकों का समर्थन पत्र राज्यपाल को सौंपा और कहा कि मेरे पास प्रयाप्त संख्या बल हैं।सुप्रीम कोर्ट द्वारा 19 विधानसभा की सदस्यता रद्द करने पर रोक लगाने से परेशान गहलोत ने राज्यपाल से विधानसभा सत्र बुलाने की सिफारिश किया जिसको राज्यपाल कलराज मिश्र ने यह कहते हुए नाकार दिया की कोरोना संकट के चलते विधानसभा सत्र नहीं बुलाया जा सकता हैं।राज्यपाल के इस बात से नाराज होकर सीएम अशोक गहलोत ने देश के प्रत्येक राजभवन के सामने विरोध प्रदर्शन करने का निर्णय लिया हैं।कांग्रेस पार्टी के बीच मचा सियासी उठापटक के चलते बसपा ने भी एंट्री करते हुए पिछले साल कांग्रेस में शामिल होने के लिए पार्टी छोड़ने वाले छह विधायकों को विधानसभा में कांग्रेस के खिलाफ मतदान करने के लिए व्हिप जारी किया, जिससे राजस्थान की सियासी बाजी पलटती हुई नजर आ रही है. बसपा प्रमुख मायावती के नए दांव से सीएम अशोक गहलोत खेमा बेचैन हो गया है।
बता दें कि 2018 के चुनाव में संदीप यादव, वाजिब अली, दीपचंद खेरिया, लखन मीणा, जोगेंद्र अवाना और राजेंद्र गुधा बसपा के टिकट पर जीत कर विधानसभा पहुंचे थे. उन्होंने पिछले साल 16 सितंबर को कांग्रेस में एक समूह के रूप में विलय के लिए अर्जी दी थी. विधानसभा स्पीकर ने अर्जी पर दो दिन बाद ही आदेश जारी करके कहा था कि इन छह विधायकों से कांग्रेस के सदस्य की तरह व्यवहार किया जाए. बसपा विधायकों के विलय से मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की सरकार को मजबूती मिली और 200 सदस्यीय विधानसभा में कांग्रेस सदस्यों की संख्या बढ़कर 107 हो गई थी.
राजस्थान के सियासत में गहलोत और पायलट के बीच चल रहे शह-मात के खेल के बीच बीजेपी विधायक ने शुक्रवार को राजस्थान हाई कोर्ट में याचिका दायर करके बसपा के छह विधायकों के कांग्रेस में विलय को रद्द करने का अनुरोध किया. इसके बाद बसपा प्रमुख मायावती ने व्हिप जारी कर खुलकर कांग्रेस के खिलाफ उतर आई हैं, जिससे कांग्रेस खेमे में बेचैन बढ़ी जबकि बीजेपी को इसमें अपना सियासी फायदा दिख रहा है.
बसपा महासचिव सतीश चंद्र मिश्र ने कहा, ‘सभी छह विधायकों को अलग-अलग नोटिस जारी करके सूचित किया गया कि चूंकि बसपा एक मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय पार्टी है और संविधान की दसवीं अनुसूची के पारा चार के तहत पूरे देश में हर जगह समूची पार्टी (बसपा) का विलय हुए बगैर राज्य स्तर पर विलय नहीं हो सकता है.’ इतना ही नहीं बसपा राजस्थान हाई कोर्ट में अयोग्यता की लंबित याचिका में हस्तक्षेप करेगी या अलग से रिट याचिका दायर करेगी.
बसपा छोड़ने वाले सभी 6 विधानसभा सदस्यों के स्पीकर ने भले ही कांग्रेस सदस्य के तौर पर मान्यता दे दी है, लेकिन अब मामला कोर्ट में पहुंचा है. ऐसे में हाईकोर्ट अगर स्पीकर के फैसले को पलट देता है और बसपा विलय की बात नहीं मानता है तो ऐसी स्थिति बनती है तो गहलोत सरकार के लिए बड़ा सियासी संकट खड़ा हो सकता है. सचिन पायलट सहित 19 विधायकों के बगावत करने से कांग्रेस का समीकरण पहले से बिगड़ा हुआ नजर आ रहा है और अब बसपा की एंट्री ने नई टेंशन पैदा कर दी है.