दिल्ली ब्लास्ट में डॉक्टर गिरफ्तार: कट्टरपंथ की नई लहर ने देश को किया हैरान
दिल्ली के रेड फोर्ट इलाके में हालिया विस्फोट में कई शिक्षित डॉक्टरों की गिरफ्तारी ने सुरक्षा एजेंसियों और नागरिक समाज दोनों को चिंता में डाल दिया है. एनआईए और दिल्ली पुलिस की टीमों ने एक मल्टी-स्टेट ऑपरेशन में इस नेटवर्क के कई सदस्यों को पकड़ा, जिसके पास तीन टन विस्फोटक बरामद हुए. डॉक्टर्स, इंजीनियर और अन्य पढ़े-लिखे प्रोफेशनल्स का आतंकवादी गतिविधियों में संलिप्त होना दर्शाता है कि आतंकी संगठन अब तकनीकी एक्सपर्ट्स को टार्गेट कर रहे हैं, जिससे उनके ऑपरेशनों को गति और वैधता मिलती है
विशेषज्ञों का कहना है कि इस तरह की घटनाएँ अक्सर कट्टर विचारधारा के शिकार होने, ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर फैलने वाले कट्टर कंटेंट और कुछ सोशल तथा आर्थिक वजहों से पैदा होती हैं. पुराने समय में आतंकवादी संगठन ज्यादातर कम पढ़े-लिखे युवाओं को चुनते थे, लेकिन अब डॉक्टर, इंजीनियर और आईटी ग्रेजुएट्स भी इन नेटवर्क में शामिल हो रहे हैं, जिससे मसला और गंभीर बन गया है.
जांच एजेंसियां इस केस को अलग-अलग राज्यों की यूनिवर्सिटी, अस्पताल और रिसर्च इंस्टिट्यूट तक फैली साजिश मान रही हैं, और सबूतों की गहराई से छानबीन कर रही हैं. सोशल मीडिया पर वायरल कट्टरपंथी विचार, डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर प्रोपेगेंडा और नेटवर्किंग ने इस पैटर्न को संभावित रूप से और खतरनाक बनाया है.
यह घटना देशवासियों के मन में चिंता पैदा करती है, और साथ ही यह भी स्पष्ट करती है कि कट्टर सोच या आतंकवाद किसी खास शिक्षा, आर्थिक स्थिति या धर्म से नहीं जुड़ा है, बल्कि गलत विचारधारा और सामाजिक-आर्थिक कारकों का मिला-जुला असर है.
दिल्ली ब्लास्ट केस ने दिखाया है कि व्हाइट कॉलर टेररिज्म एक नई चुनौती बन चुका है — देश के पढ़े-लिखे तबके को आतंकवादी संगठनों ने टारगेट करना शुरू कर दिया है.
ब्लास्ट में कथित तौर पर शामिल डॉक्टरों के सोशल मीडिया गतिविधियों, संदेशों और इलेक्ट्रॉनिक डेटा की जांच लगातार चल रही है.
सुरक्षा एजेंसियां अब यूनिवर्सिटी, अस्पताल और अन्य उन्नत संस्थानों पर संभावित कट्टरपंथ की निगरानी बढ़ा रही हैं.
डिजिटल साक्ष्य, सार्वजनिक संवाद और जांच एजेंसियों की सतर्कता इस केस को हल करने में अहम भूमिका निभा रही है.