माँ एक ऐसा शब्द है जिसको परिभाषित करने का काम काफी लोगों किया लेकिन किसी ने माँ को परिभाषित नहीं कर पाया क्योंकि माँ के बारे में जितना कहा जाए उतना ही कम है. हम सभी लोग मां से काफी प्यार करते हैं हम लोगों को मैं हमेशा याद आती है नाम दूर होकर भी पास होती हैं. आप लोगों को शायद नहीं मालूम नहीं होगा माँ के बिना कैसे जी पाते हैं लोग इसलिए मां की यादें ताजा करने के लिए हम एक कविता प्रस्तुत कर रहे हैं इस कविता को आप ध्यान से पढ़ें और समझें कि माँ क्या चीज होती है और माँ को याद करें
“माँ की याद”
माँ, तेरी याद आती है
तेरी यादो में सहम सा जाता हूँ
होंठ तो हिलते है पर कुछ कह नहीं पाता हूँ
पर मेरी आत्मा तुझ से कुछ कह रही है
मुझे यकीन् है की तु सुन रही है………
माँ तुझ से बढ़कर कोई दूजा नहीं
तेरी सेवा से बडी़ कोई पूजा नहीं
दुनिया में कोई नहीं है तेरे समान
तु ही है मेरा भगवान….
तुने ही उँगली पकड़ चलना सिखाया
दुनिया में जीने का मतलब बताया
तुझसे ही हुई मेरी पढा़ई शुरू
‘माँ’ तु ही है मेरा सबसे बडा गुरू…..
बचपन में वो तेरा डांटना
चूडीयाँ समां कर मुझे मारना
ऊपरी मन से गुस्सा करती थी
मेरे रोने पर मुझे आँचल में भरती थी….
वो आँगन से कपडे़ धोने की आवाज
लगता था मुझे मधुर संगीत-साज
याद आता है वो समय आज
किस तरहाँ करती थी तु सारा काम-काज…
रसोई में तेरा पकवान बनाना
ढेर खुशियों का जैसे आँगन में आना
गोद में बिठाकर मुझे
स्नेह से फिर खिलाना….
याद आती है तेरे हाथों से सजी थाली
जिसमें होती थी
पूडी़ सब्जी ,आचार
और खीर की प्याली….
तेरे बिना खाने की कोई पुछता नहीं
जैसे बचपन में खिलाती थी तु दुध और दही
तेरे हाथों से बने खाने को हूँ तरसता
तेरी फोटो को देखकर हूँ हँसता
की तु वात्सल्य का बादल मुझ पर कब बरसायेगी
माँ तु कब मेरी इस भूख को मिटायेगी…
भगवान ने तुझे किस तरहाँ बनाया है
तु भगवान की ही छाया है
और ये तेरी ही माया है
की वो तेरे बिना नहीं रह पाया है….
और तुझसे क्या कहुँ
तु तो सब जानती है
मेरी हर एक सांस पहचानती है
पर मैं भी जानता हूँ तुझे
दिन-रात याद करती है मुझे….
हर पल मुझे भी
तेरी फिकर रहती है
क्योंकि हे ! माँ
तु हमेशा मेरे दिल में रहती है…..
तुझ पर ही शुरू
तुझ पर ही खत्म मेरी कहानी है
तेरी ममता जैसे समंदर का पानी है
तु ही दुनिया में सर्वोपरी है
तेरे बिना ये कविता अधूरी है
तेरे बिना ये कविता अधूरी है………