नीतीश कुमार की चुनावी रणनीति: सत्ता विरोधी लहर में जदयू का बड़ा टेस्ट

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार एक बार फिर चुनावी रण में हैं और इस बार हालात पहले से ज्यादा चुनौतीपूर्ण दिखाई दे रहे हैं। चुनाव कार्यक्रम (वोटिंग 6 व 11 नवंबर; मतगणना 14 नवंबर) घोषित होते ही बिहार में बीजेपी-जद(यू) गठबंधन ने ज़मीनी तैयारी तेज कर दी है। राज्य में सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहने का रिकॉर्ड बना चुके नीतीश कुमार के नेतृत्व में एनडीए ने विधानसभा चुनाव 2025 के लिए 220+ सीटों की जीत का बड़ा लक्ष्य रखा है। हाल ही में पटना में आयोजित जदयू की बैठक में नीतीश कुमार ने पार्टी कार्यकर्ताओं को बूथ स्तर पर संगठन मजबूत करने के निर्देश दिए, साथ ही नए चेहरों को भी मौका देने की चर्चा की गई है।

बिहार के सबसे लम्बे समय तक मुख्यमंत्री रहे नीतीश कुमार एक बार फिर निर्णायक चुनावी दहलीज़ पर हैं। केंद्र—राज्य तालमेल, कास्ट-अरिथमेटिक और पुराने गठबंधनों की नई जुगलबंदी इस रेस की दिशा तय करेगी। उधर, विरोधी दल उन्हें ‘यू-टर्न’ की राजनीति का चेहरा बताते हैं; जबकि जद(यू) का दावा है कि “वोट विकास पर होगा”

राजनीतिक हलचल के बीच विपक्षी पार्टियां नीतीश सरकार की कार्यशैली और उनके मंत्रियों पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों को लेकर लगातार हमलावर हैं। RJD और कांग्रेस जैसे विपक्षी दल बिहार में मतदाता सूची में गड़बड़ी की आशंका जता रहे हैं और सरकार पर अल्पसंख्यकों और पिछड़े वर्ग के लोगों की अनदेखी के आरोप लगाए जा रहे हैं।

इस बार का चुनाव नीतीश कुमार के लिए सिर्फ सत्ता की लड़ाई नहीं, बल्कि उनकी साख और विकास मॉडल का भी बड़ा इम्तिहान है। भले ही उनके कार्यकाल में बिजली, सड़क, शिक्षा और महिला सशक्तिकरण के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य हुए हैं, लेकिन बेरोजगारी और राज्य से बाहर पलायन जैसे बड़े मुद्दे सरकार की छवि पर सवाल खड़े करते हैं। जन सुराज पार्टी के प्रशांत किशोर सहित कई नेता नीतीश के विकास मॉडल को चुनौती दे रहे हैं।

गठबंधन गणित की बिसात पर छोटे-मध्यम साथियों की मांगें भी दबाव बना रही हैं। यूपी की सहयोगी SBSP ने सीटें न मिलने पर बिहार में अकेले लड़ने का संकेत दिया—जो NDA की रणनीति पर प्रभाव डाल सकता है

नीतीश कुमार की रणनीति में इस बार मुफ्त योजनाओं, विशेष तौर पर महिला रोजगार योजना पर जोर है जिसमें हाल ही में 21 लाख महिलाओं को वित्तीय सहायता दी गई। NDA गठबंधन में लोजपा (राम विलास) और चिराग पासवान के जुड़ने से समीकरण मजबूत दिख रहा है, वहीं विपक्ष भी पूरे जोश के साथ मैदान में है। अब देखना होगा कि नीतीश कुमार अपने नेतृत्व और अभियान से बिहार की सत्ता में फिर कितना असर दिखा पाते हैं।