बिहार में एनडीए की सरकार की वापसी लगभग तय मानी जा रही है, लेकिन यह अभी भी स्पष्ट नहीं है कि नीतीश कुमार दसवीं बार मुख्यमंत्री बनेंगे या नहीं। रुझानों और राजनीतिक समीकरणों को देखते हुए इस पर असमंजस बढ़ गया है। आइए समझते हैं वे पाँच प्रमुख कारण जिनसे यह सवाल जोर पकड़ रहा है।
1. रुझानों में बीजेपी की जबरदस्त बढ़त
14 नवंबर, दोपहर 3 बजे तक चुनाव आयोग की वेबसाइट पर जो रुझान सामने आए, उनके अनुसार बीजेपी जदयू से कहीं आगे चल रही थी।
- बीजेपी ने 90 से अधिक सीटों पर बढ़त बना रखी थी।
- पिछली बार भी भाजपा ‘बड़ा भाई’ की भूमिका में थी, लेकिन इस बार अंतर और अधिक है।
यदि यह रुझान नतीजों में बदलते हैं, तो गठबंधन में जदयू की सौदेबाजी की ताकत कमज़ोर हो सकती है।
2. बिना जदयू के भी बहुमत का रास्ता
विश्लेषकों का मानना है कि इस बार की सीटों की स्थिति ऐसी बन रही है कि बीजेपी और अन्य सहयोगी दल (हम, वीआईपी आदि) मिलकर भी बहुमत हासिल कर सकते हैं।
- ऐसी स्थिति में जदयू मुख्यमंत्री पद को लेकर दबाव नहीं बना पाएगा।
- बीजेपी के पास राजनीतिक नेतृत्व बदलने का विकल्प खुला रहेगा।
यह समीकरण 2020 से बिल्कुल अलग है, जब जदयू के बिना एनडीए बहुमत में नहीं था।
3. 2020 की तुलना में जदयू काफी कमजोर
2020 के विधानसभा चुनाव में सीटें थीं:
- बीजेपी: 74
- जदयू: 43
- हम: 4
- वीआईपी: 4
तब जदयू की संख्या कम थी, लेकिन गठबंधन में उनकी राजनीतिक स्थिति मजबूत थी।
इस बार जदयू अगर और नीचे जाता है, तो मुख्यमंत्री पद का दावा स्वाभाविक रूप से कमजोर पड़ सकता है।
चुनाव आयोग की वेबसाइट पर दोपहर तीन बजे दिखलाया गया मतगणना का रुझान ये रहा:

4. NDA के भीतर नेतृत्व को लेकर अनिश्चितता
एनडीए नेताओं ने चुनाव प्रचार के दौरान कई बार कहा कि मुख्यमंत्री का फैसला चुनाव बाद होगा।
इस बयान को राजनीतिक हलकों में संकेत माना जा रहा है कि भाजपा नेतृत्व सीएम चेहरे पर खुलकर प्रतिबद्ध नहीं है।
ऐसे बयान नीतीश कुमार की स्थिति को अनिश्चित बनाते हैं।
5. लंबे कार्यकाल से एंटी-इंकम्बेंसी का दबाव
नीतीश कुमार लगभग दो दशक से बिहार की राजनीति के केंद्र में हैं।
लंबे शासन के कारण राज्य में एंटी-इंकम्बेंसी भी बढ़ती दिख रही है।
ऐसे माहौल में भाजपा नए नेतृत्व को आगे लाने की कोशिश कर सकती है, ताकि सरकार में नई ऊर्जा और नई रणनीति लाई जा सके।
एनडीए की सरकार बनना लगभग तय है, लेकिन मुख्यमंत्री कौन होगा—इस पर तस्वीर साफ नहीं है। बीजेपी की बढ़त, जदयू की कमज़ोर स्थिति, और गठबंधन के भीतर नेतृत्व पर स्पष्टता की कमी—ये सभी संकेत देते हैं कि नीतीश कुमार का दसवीं बार मुख्यमंत्री बनना आसान नहीं होगा।