हर साल के हर दिन के लिए एक कविता
अपनी महफ़िल से रिहा होने नहीं देता
मेरा दर्द मुझको तन्हा होने नहीं देता
जो मुझसे हर वक़्त ख़फ़ा सा रहता है
वो मुझको कभी ख़फ़ा होने नहीं देता
मैं उससे जब भी दिल की बोलता हूँ
वो मेरे दिल की ज़रा होने नहीं देता
मैं उसके करीब जाना चाहता…