आम चुनाव में चुने गए सांसदों द्वारा कल संसद भवन में शपथ लिया गया । इस शपथ ग्रहण की सबसे बड़ी बात यह रही कि शपथ ग्रहण समारोह के दिन ही सारे सांसद अपने में भिड़ गए। हिंदू-मुस्लिम करके एक दूसरे पर लांछन लगाते रहे। वे लोग भूल गए की वे इस पवित्र लोकतंत्र के पवित्र मंदिर में खड़े होकर हिंदू मुसलमान कर रहे हैं। संप्रदायिक ताकतों को बढ़ावा दे रहे हैं । एक दूसरे को नीचा दिखाने का प्रयास कर रहे हैं। और बाद में यही लोग बोलते हैं कि भाई हम तो नहीं फैला रहे हैं हम तो सिर्फ भाईचारा चाहते हैं। पर अगर गौर किया जाए तो कल और परसों दो रोज के संसद की कार्यवाही अगर देखा जाए तो उनके चेहरे खुद-ब-खुद सामने आ जा रहा है कि हमारे सांसद क्या चाहते हैं? हमारे सांसद क्या करना चाहते हैं देश को कहां ले जाना चाहते हैं? चाहे वह साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर हो, असूदीन ओवैसी हो, राहुल गांधी हो या फिर और सारे नेताओं जो अपने धर्म अपनी जाति को ही अपना पहचान मानते हैं भारत और भारत से जुड़ा लोकतंत्र उनके लिए कोई मायने नहीं रखता? एक पक्ष अगर जय श्री राम बोल रहा है तो दूसरा पक्ष अल्लाह हू अकबर कहने से बाज नहीं आता दूसरा अगर अल्लाह हू अकबर बोल रहा है तो पहला जय श्री राम कहने से नहीं चूकता। वे भूल जाते हैं की वे आम जनता नहीं है, आम जनता की तरह व्यवहार नहीं कर सकते हैं। वह देश का एक राजनेता है जिसके ऊपर देश सुचारू रूप से चलाने की जिम्मेदारी है। अगर वे इस तरह का व्यवहार करेंगे इस तरह से दूसरे का विरोध करेंगे तो देश कहां जाएगा किस तरह से प्रगति होगी इन सारी बातों को ध्यान में रखना चाहिए। किसी भी देश वासियों के लिए, वह जनता हो या राजनेता उनके लिए देश से ऊपर कुछ नहीं होना चाहिए।खासकर जब आप एक सम्वैधानीक या राजनीतिक पद पर हैं तो आप को इस बात का ध्यान रखना ही पड़ता है।