तबलीगी जमात ने मीडिया से जो चिट्ठियां साझा की हैं उनके मुताबिक सभी प्रतिभागी लॉकडाउन की अवधि शुरू होने से पहले ही आ गए थे और उनकी जानकारी 24 मार्च को हजरत निजामुद्दीन के एसएचओ से साझा की गई थी.
दिल्ली के निजामुद्दीन क्षेत्र में तबलीगी जमात की ओर से आयोजित इज्तिमा (धार्मिक समागम) भारत में कोरोना वायरस को फैलाने का बड़ा संवाहक बन गया? मार्च के पहले हफ्ते में इस कार्यक्रम में शामिल हुए 10 लोगों की मौत के तार इस आयोजन से जुड़ते नजर आ रहे हैं. इसके अलावा कई लोगों का Covid-19 टेस्ट पॉजिटिव आ चुका है. इस कार्यक्रम में विदेश से 2,000 से अधिक लोगों ने हिस्सा लिया, जिनमें सऊदी अरब, इंडोनेशिया और मलेशिया के लोग भी शामिल थे, जहां Covid-19 का खासा असर पहले ही देखा जा चुका था.
दिल्ली के कार्यक्रम से कुछ दिन पहले, तबलीगी जमात ने मलेशिया के सेलेन्गोर में श्री पेटलिंग मस्जिद में दिल्ली से भी बड़े धार्मिक कार्यक्रम का आयोजन किया था. 27 फरवरी से 1 मार्च तक आयोजित इस कार्यक्रम में कनाडा, नाइजीरिया, भारत, चीन, दक्षिण कोरिया, सिंगापुर, इंडोनेशिया, ब्रुनेई और ऑस्ट्रेलिया से आए 1,500 विदेशी नागरिकों समेत कुल 16,000 लोग शामिल हुए.
दुर्भाग्य से ये शायद दक्षिण पूर्व एशिया में Covid-19 का सबसे बड़ा क्लस्टर साबित हुआ. इस आयोजन में शामिल हुए लोगों में से पहली मौत 17 मार्च को हुई थी. यह साफ नहीं है कि इस क्लस्टर का इंडेक्स स्प्रेडर कौन था? इस क्लस्टर से बीमारी का पता चलते ही मलेशिया में आंशिक रूप से लॉकडाउन का ऐलान किया गया, जिसे फिर पूरे लॉकडाउन में बदल दिया गया. तब तक मलेशिया में जितने Covid-19 पॉजिटिव केस थे, उसमें से दो तिहाई इसी क्लस्टर से ही आए थे.
30 मार्च तक इस कार्यक्रम में शरीक होने वाले 1,290 लोगों का Covid-19 टेस्ट पॉजिटिव आ चुका है. ये मलेशिया में कुल सामने आए मामलों का 49.2 प्रतिशत है. यह संख्या बढ़ सकती है क्योंकि कई टेस्टिंग नतीजे आना अभी बाकी है. इस कार्यक्रम से पहले तक मलेशिया में राजनीतिक टकराव की ही गूंज थी. तब तक मलेशिया में Covid-19 के पॉजिटिव मामले 30 से भी कम थे. शायद, राजनीतिक अस्थिरता ने इस घटना से फोकस हटाया. तबलीगी जमात एक इस्लामी मिशनरी आंदोलन है. ये मुस्लिमों से अपील करता है कि वे इस्लामिक पैगंबर मुहम्मद के दौर जैसे ही इस्लाम धर्म के पालन की तरफ लौटें. इस संगठन के 15 करोड़ से 250 करोड़ अनुयायी होने का अनुमान है. इनमें से अधिकतर दक्षिण एशिया में रहने वाले हैं. संगठन की मौजूदगी 180 और 200 देशों के बीच कहीं न कहीं है.
तबलीगी जमात की ओर से दिल्ली में हुए धार्मिक कार्यक्रम से जुड़े घटनाक्रम ने भारतीय अधिकारियों को दौड़ने पर मजबूर कर दिया. लेकिन ये भी तथ्य है कि यह आयोजन देश में औपचारिक तौर पर लॉकडाउन शुरू होने से पहले हुआ था. उसी अवधि में भारत में कई और धार्मिक आयोजन भी हुए. ये जिम्मेदारी संबंधित सरकारी एजेंसियों पर थी कि वो बीमारी के फैलाव के खतरे को देखते हुए ऐसे आयोजनों पर सख्त नजर रखते. वो भी ऐसी स्थिति में जब मलेशिया ऐसे ही आयोजन का बुरा नतीजा भुगत चुका था.
मलेशिया में जो आयोजन हुआ, उससे जुड़े दस्तावेज बताते हैं कि वहां सोशल डिस्टेंसिंग के विपरीत वहां लोग बड़ी संख्या में आपस में सटे हुए मौजूद थे. इबादत के दौरान उन्होंने एक दूसरे के हाथ पकड़े हुए थे. कार्यक्रम के दौरान लोगों ने खाना भी एक दूसरे की प्लेटों से साझा किया. नतीजा जो हुआ वो मलेशिया के लिए बुरा इतिहास बन गया. दिल्ली के आयोजन की प्रकृति भी हो सकता है कि ऐसी ही रही हो. तबलीगी जमात दुनिया भर में ऐसे आयोजन करती रहती है.
हम जानते हैं कि दिल्ली के कार्यक्रम में करीब 300 विदेशी नागरिकों ने हिस्सा लिया, और उनमें से कुछ Covid-19 संक्रमण के वाहक हो सकते हैं. सरकारी सूत्रों का कहना है कि इन विदेशियों में इंडोनेशिया, मलेशिया, बांग्लादेश और कुछ अन्य देशों के लोग शामिल थे. मोटे तौर पर 1,900 भारतीयों ने इस कार्यक्रम में हिस्सा लिया, जिनमें तमिलनाडु से 501, असम से 216, उत्तर प्रदेश से 156, महाराष्ट्र से 109 और मध्य प्रदेश से 107 लोग आए थे.
इस घटना में शामिल होने वाले विदेशियों की संख्या को देखा जाए, (वो भी खास तौर से प्रभावित देशों से आए लोग) तो केंद्र और राज्य सरकार को इस आयोजन को लेकर सतर्क रहना चाहिए था. क्या जो लोग कार्यक्रम में हिस्सा लेने के लिए आए उनकी हवाई अड्डों पर अच्छी तरह स्क्रीनिंग की गई? जिस तरह के हालात थे क्या आयोजकों को उसमें खास सुरक्षा उपाय बरतने के बारे में अवगत कराया गया? क्या विदेशियों ने अनिवार्य क्वारनटीन प्रक्रिया का पालन किया? ऐसे सवालों में से कई का जवाब फिलहाल हमारे पास नहीं है.
हमें जो पता है वो ये है कि आयोजकों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है और कई विदेशियों को ब्लैकलिस्ट किया गया है. क्योंकि उन्होंने वीजा नियमों का उल्लंघन किया. रिपोर्ट्स के मुताबिक कार्यक्रम में हिस्सा लेने वाले कई लोग खुद के लिए आवंटित उन्हीं जगहों पर बने रहे क्योंकि लॉकडाउन की अचानक घोषणा हुई थी.
तबलीगी जमात ने मीडिया से जो चिट्ठियां साझा की हैं उनके मुताबिक सभी प्रतिभागी लॉकडाउन की अवधि शुरू होने से पहले ही आ गए थे और उनकी जानकारी 24 मार्च को हजरत निजामुद्दीन के एसएचओ से साझा की गई थी. साथ ही उनसे कार्यक्रम वाले क्षेत्र से लोगों को हटाने के लिए सहयोग देने का भी अनुरोध किया था.
फिलहाल कार्यक्रम में जो-जो शामिल हुए देश भर में उन्हें ढूंढ कर क्वारनटीन में भेजा जा रहा है. उनके संपर्क में जो लोग आए उनकी भी पहचान की जा रही है, जिससे संक्रमण के संभावित प्रसार को कम से कम से किया जा सके. इस क्लस्टर के पूरे असर का पता एक सप्ताह के बाद चलेगा.