राजस्थान के समाज सेवा पार्टी की महिला प्रकोष्ठ प्रदेश अध्यक्ष श्वेता कुमारी ने लाँकडाउन में पैदल चल रहे मजदूरों के साथ निंतर हो रहे सड़क,ट्रेन हादसे और भुखे प्यासे मौते को लेकर सरकार से सवाल जवाब किया हैं।उन्होंने कहा कि लगातार हादसों में मजदूर शिकार हो रहें है जब कि सरकार के द्वारा इन मजदूरों को अलग अलग राज्य से ट्रेन व बस के द्वारा उनके घर पहुंचाने की व्यवस्था की हुई है तथा उसके बावजूद भी मजदूर पैदल चल कर कई कई सौ किलो मीटर पैदल ही अपने घरों को निकले हुए है,या तो इन मजदूरों को सरकार पर भरोषा नही हैं!
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इस लिए वह जैसे भी अपने घर पहुंचने के लिए पैदल चलने को विवश हैं या कह लीजिए सरकार सब को उनके राज्य घरों तक पहुंचाने में नाकाम हो रही है! इन दिनों अपने घर लौटते मजदूरों की तस्वीरें और रास्ते में नंगे पांव चलते छोटे बच्चे, भूख से बिलखते बच्चों का वीडियो देख कर मन भावुक हो जाता है। समझ नहीं आता कि इन मजदूरों की क्या खता है जो वे इतनी सजा भुगत रहे हैं। यह कटु सत्य है कि कोरोना को लेकर आए कुछ अमीर विदेश से, पर उसका खमियाजा आज पूरा देश भुगत रहा है। मगर इसका सबसे ज्यादा प्रभाव मजदूरों पर पड़ा है जो रोजगार की तलाश में अपना गांव, शहर और राज्य छोड़ कर दूसरी जगह काम करने के लिए पहुंचे और अब इस माहामारी के कारण अपना सब कुछ दांव पर लगा कर घर वापस जा रहे हैं।
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मुजफ्फरनगर में भी देर रात्रि मुजफ्फरनगर सहारनपुर रॉड रोहाना टोल प्लाजा के पास एक रोडवेज चालक ने अपनी लापरवाही दिखाते हुए कई मजदूरों को कुचल दिया यह मजदूर अपने घर बिहार पैदल ही जा रहें थे।आखिर इसका जिम्मेदार कौन!पिछले दिनों भी औरंगाबाद में ट्रेन की पटरी पर हुई घटना ने पूरे देश को रुला दिया। कभी-कभार ऐसी घटनाओं से मन इतना व्यथित हो जाता है कि यह सवाल पूछने का मन करता है कि इन मजदूरों को किस बात की सजा दी जा रही है! क्या वे गरीब होने की सजा भुगत रहे हैं? तो उन्हें गरीब बनाया किसने?आज ज्यादातर राज्य श्रमिकों को विशेष ट्रेनों और बसों के माध्यम से वापस ला रहे हैं।
इन मजदूरों की आंखों में एक ओर घर पहुंचने की खुशी झलक रही है तो उनके चेहरे पर गरीब होने की लाचारी भी साफ झलक रही है। दुनिया का इतिहास उठा कर देख लिया जाए, किसी भी महामारी या युद्ध में अगर कोई वर्ग सबसे अधिक प्रभावित हुआ है तो वह है समाज और देश का सबसे निचला, गरीब और कमजोर वर्ग। ऐसा नहीं है कि काम करने, रोजगार तलाशने और व्यापार करने का चलन वर्तमान समय में है। सैकड़ों साल पहले भी लोग एक स्थान से दूसरे इलाकों की ओर व्यापार और काम करने की तलाश में आते-जाते रहे हैं। तब भी समाज में यह वर्ग उसी गरीबी के दलदल में फंसा रहता था।