ये महिला किसी भगवान से कम नहीं,सवारा झुग्गी झोपडिय़ों की जिंदगी

धरती पर मानव समाज को जीवन जीने की विधि और मानव मात्र के प्रति उसका क्या उदेश्य है।इस का ज्ञान कराने के लिए इस धरती पर अनेक महापुरुषों और संत महत्माओं का अवतर्ण होता रहता है। ऐसे अनेक उदाहरण आपको देखने सुनने को मिले होगे। बिहार के भागलपुर जिले की एक ऐसी ही महिला है जो जिले के झुग्गी-झोपड़ी में जीने वालों की आवाज बन चुकी है।मान हैं सुषमा। सुषमा पिछले कई वर्षो से समाज के अंतिम पंक्ति में खड़े लोगों और खासकर महिलाओं के शोषण के खिलाफ पिछले दो दशकों से संघर्ष कर रही हैं। उन्हें मुख्यधारा से जोड़ रही हैं। जिन झुग्गियों में कभी अशिक्षा और अभाव का बोलबाला था आज वहां संगीत की सरिता बहा रही है। अच्छी शिक्षा हासिल कर लड़कियां सबल बन रही हैं, खुद को अभिव्यक्त कर रही हैं।

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लोदीपुर के जगतपुर निवासी सुषमा का बचपन जिस परिवेश में बीता, वहां से यहां तक का सफर आसान नहीं था। लोग कहते थे पढऩे-लिखने और बाहर निकलने से लड़कियों का चरित्र खराब हो जाता है, लेकिन  परिवेश ने ही उसे मजबूत बनाया। अब वह महिलाओं की लड़ाई लड़ रही हैं। करीब डेढ़ सौ लड़कियों को पढऩे लिखने के लिए प्रेरित कर चुकी हैं। उन्हें अपने पैरों पर खड़ा कर चुकी हैं।

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सुषमा का कहना है कि झुग्गी झोपडिय़ों में प्रतिभाएं छिपी हुई हैं।वह भागलपुर जिले के भीखनपुर, इस्लामनगर और मायागंज आदि इलाकों की झुग्गी में जाकर लड़कियों व महिलाओं को पढ़ाई समेत अन्य कार्यों के लिए प्रेरित करती हैं। सुषमा के प्रयास का नतीजा ही है कि अभी झुग्गी की 50 से ज्यादा लड़कियां स्कूल, कॉलेज व सरकारी नौकरियों में हैं। हाल ही में दो लड़कियों ने बिहार पुलिस की नौकरी भी पाई है।

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