जयपुर। मोदी सरकार किसानों के फायदे के लिए एक और कदम उठाने जा रही है। कृषि बिल के भारी विरोध के बाद सरकार किसानों के खाते में 5000 रुपए और डालने के बारे में सोच रही है जिससे किसानों के गुस्सा एवं नाराजगी को शांत किया जा सके और वे आर्थिक तौर पर और मजबूत हो।
सरकार आगामी कुछ दिनों में या अगले शीतकालीन सत्र में किसानों को खाद्य सब्सिड़ी का पैसा उनके बैक खाते में ड़ीबीटी के माध्यम से हस्तांतरण करने की योजना पर काम कर सकती है।
आपको बाता दें की प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि स्कीम के तहत मिल रही 6000 रुपये की मदद के अलावा भी 5000 रुपये देने की तैयारी है। यह पैसा खाद के लिए मिलेगा, क्योंकि सरकार बड़ी-बड़ी खाद कंपनियों को सब्सिडी देने की बजाय सीधे किसानों के हाथ में फायदा देना चाहती है।
कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (CACP- Commission for Agricultural Costs and Prices) ने केंद्र सरकार से किसानों को सीधे 5000 रुपये सालाना खाद सब्सिडी के तौर पर नगद देने की सिफारिश की है।आयोग चाहता है कि किसानों को 2,500 रुपये की दो किश्तों में भुगतान किया जाए।
पहली किश्त खरीफ की फसल शुरू होने से पहले और दूसरी रबी की शुरुआत में दी जाए। केंद्र सरकार ने सिफारिश मान ली तो किसानों के पास ज्यादा नगदी होगी, क्योंकि सब्सिडी का पैसा सीधे उनके खाते में आएगा। वर्तमान में कंपनियों को दी जाने वाली उर्वरक सब्सिडी की व्यवस्था भ्रष्टाचार की शिकार है। हर साल सहकारी समितियों और भ्रष्ट कृषि अधिकारियों की वजह से खाद की किल्लत होती है और अंतत: किसान व्यापारियों और खाद ब्लैक करने वालों से महंगे रेट पर खरीदने को मजबूर होते हैं।
एमपी के सीएम शिवराज ने की थी वकालत
बीजेपी शासित मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पिछले दिनों किसानों के एक कार्यक्रम में कहा कि खाद सब्सिडी में भ्रष्टाचार का खेल होता है। इसलिए यह पैसा खाद कंपनियों की जगह सीधे किसानों के बैंक अकाउंट में डाला जाना चाहिए। मैं प्रधानमंत्री जी से आग्रह करुंगा कि सब्सिडी कंपनियों की जगह किसानों के खाते में नगद डाल दी जाए। फिर किसान बाजार में जाकर खाद खरीदे। किसी भी हालत में ये सब्सिडी खाने का खेल खत्म करना है।
दरअसल, शिवराज सिंह ने ये बात यूं ही नहीं की है। केंद्र सरकार डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर (डीबीटी) के जरिए किसानों को उर्वरक की सब्सिडी सीधे उनके बैंक अकाउंट में देने पर विचार कर रही है। किसानों के खाते में नगद सब्सिडी जमा कराने के लिए 2017 में ही नीति आयोग की एक विशेषज्ञ समिति गठित कर दी गई। लेकिन अब तक इस पर ठोस काम नहीं हो पाया। लेकिन अब सीएसीपी की सिफारिश के बाद नई व्यवस्था लागू होने की उम्मीद जग गई है।
मंत्रियों का क्या कहना है?
इस साल 20 सितंबर को रसायन और उर्वरक मंत्री सदानंद गौड़ा ने एक सवाल के जवाब में लोकसभा में बताया था कि किसानों के बैंक खातों में डीबीटी का कोई ठोस निर्णय फिलहाल नहीं हुआ है। किसानों को उर्वरक राज सहायता के डीबीटी की शुरुआत करने के विभिन्न पहलुओं की जांच करने के लिए उर्वरक और कृषि सचिव की सह अध्यक्षता में एक नोडल समिति गठित की गई है। इस बारे में जब हमने केंद्रीय कृषि राज्य मंत्री कैलाश चौधरी से बातचीत की तो उन्होंने कहा कि खाद सब्सिडी आगे का विषय है। जब होगा तब बता देंगे।
खाद सब्सिडी पर क्या कहते हैं किसान
राष्ट्रीय किसान महासंघ के संस्थापक सदस्य बिनोद आनंद का कहना है कि सरकार खाद सब्सिडी खत्म करके रकबे के हिसाब से उसका पूरा पैसा किसानों के अकाउंट में दे दे तो यह अच्छा होगा। लेकिन अगर सब्सिडी खत्म करके उस पैसे का कहीं और इस्तेमाल करेगी तो किसान इसके विरोध में उतरेंगे। जितना पैसा उर्वरक सब्सिडी के रूप में कंपनियों को जाता है उतने में हर साल सभी 14।5 करोड़ किसानों को 6-6 हजार रुपये दिए जा सकते हैं।
पीएम किसान सम्मान निधि स्कीम के तहत केंद्र सरकार के पास देश के करीब 11 करोड़ किसानों के बैंक अकाउंट और उनकी खेती का रिकॉर्ड है। यदि सभी किसानों की यूनिक आईडी बना दी जाए तो रकबे के हिसाब से सब्सिडी वितरण काफी आसान हो जाएगा।
जानिए खाद सब्सिडी का पुरा लेखा-जोखा
उर्वरक सब्सिडी के लिए सरकार सालाना लगभग 80 हजार करोड़ रुपये का इंतजाम करती है। 2019-20 में 69418।85 रुपये की उर्वरक सब्सिडी दी गई। जिसमें से स्वदेशी यूरिया का हिस्सा 43,050 करोड़ रुपये है। इसके अलावा आयातित यूरिया पर 14049 करोड़ रुपये की सरकारी सहायता अलग से दी गई। छह सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियां, 2 सहकारी और 37 निजी कंपनियों को यह सहायता मिली।
क्या है वजह?
भारत में यूरिया की सबसे ज्यादा खपत है। ज्यादातर किसान इसका जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल करते हैं। इंडियन नाइट्रोजन ग्रुप (ING) की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में नाइट्रोजन प्रदूषण का मुख्य स्रोत कृषि है। पिछले पांच दशकों में हर भारतीय किसान ने औसतन 6,000 किलो से अधिक यूरिया का इस्तेमाल किया है। यूरिया का 33 प्रतिशत इस्मेमाल चावल और गेहूं की फसलों में होता है। शेष 67 प्रतिशत मिट्टी, पानी और पर्यावरण में पहुंचकर उसे नुकसान पहुंचाता है।
मिट्टी में नाइट्रोजन युक्त यूरिया के बहुत अधिक मात्रा में घुलने से उसकी कार्बन मात्रा कम हो जाती है। पंजाब, हरियाणा व उत्तर प्रदेश के भूजल में नाइट्रेट की मौजूदगी विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मानकों से बहुत अधिक पाई गई है। हरियाणा में यह सर्वाधिक 99।5 माइक्रोग्राम प्रति लीटर है। जबकि डब्ल्यूएचओ का निर्धारित मानक 50 माइक्रोग्राम प्रति लीटर है। ऐसे में सरकार यूरिया के संतुलित इस्तेमाल पर जोर दे रही है। समझा जाता है कि सीधे खाद सब्सिडी देने से नाइट्रोजन के गैर कृषि स्रोतों पर लगाम लग सकेगी।