जयपुर। उत्तर प्रदेश की हाथरस घटना बेहद झकझोरने वली थी जहा एक ओर उसके साथ रेप होता है और फिर उसकी हत्या कर उसके शव को जला दिया जाता है। मामला यहीं तक नहीं रुकता है, स्थानीय प्रशासन और सरकार दोनों ने संयुक्त रुप से रेप की घटना न होने की बात भी कहते रहें। वहीं दुसरी ओर किसी भी मीड़िया के लोगों को तथा राजनीतिक दलों के नेताओं को वहां जाने की मनाही थी पुलिस उन्हे गांव के पहले हीं रोक दे रही थी।
मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस के नेता राहुल गांधी व प्रियंका गांधी ने भी वहां जाने की कोशिश की लेकिन पुलिस उन्हे नोएड़ा बार्डर पर ही रोक दिया लेकिन उसके दो-तीन दिन बाद सरकार ने जाने की अनुमती दे दी थी। लोगों में इस बात की आशंका थी को अगर मामला कुछ नहीं है तो जाने से क्यों रोका जा रहा है।
इलाबाहाद हाईकोर्ट ने हाथरस केस पर संज्ञान लिया
जिसके बाद इलाबाहाद हाईकोर्ट ने इस मामले को संज्ञान लिया और योगी सरकार से इस घटना पर स्थिती स्पष्ट करने को कहा। जिसके बाद योगी सरकार ने गृह मंत्रालय को पत्र लिखकर सीबीआई से जांच कराने की अनुशंसा की।
सीबीआई जांच की निगरानी इलाहाबाद हाईकोर्ट करेगा
आपको बता दें की उत्तर प्रदेश के हाथरस में दलित युवती से गैंगरेप और हत्या मामले में जांच की निगरानी और मामला ट्रांसफर करने संबंधित याचिकाओं पर मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया। अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने हाथरस केस के ट्रायल को फिलहाल राज्य से बाहर शिफ्ट करने से इनकार कर दिया। साथ ही कहा है कि सीबीआई जांच की निगरानी इलाहाबाद हाईकोर्ट करेगा।
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट आज हाथरस गैंगरेप कांड की कुछ याचिकाओं पर फैसला सुनाया, जिनमें हाथरस मामले की अदालत की निगरानी में जांच कराने और मामले को दिल्ली स्थानांतरित कराने का अनुरोध किया गया है। हाथरस में एक दलित लड़की से कथित तौर पर सामूहिक दुष्कर्म किया गया था और उपचार के दौरान उसकी मौत हो गई थी।
कोर्ट ने कहा कि सीबीआई वहां स्थिति रिपोर्ट दाखिल करेगी
हाथरस केस पर सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि अभी इस मामले की जांच सीबीआई कर रही है, ऐसे में तुरंत ट्रांसफर की जरूरत नहीं है। इस पर बाद में विचार किया जाएगा। उच्चतम न्यायालय ने कहा कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय पीड़ित परिवार और गवाहों की सुरक्षा से लेकर सभी पहलुओं पर विचार करेगा साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा कि सीबीआई वहां स्थिति रिपोर्ट दाखिल करेगी।
प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी रामासुब्रमणियन की पीठ ने एक जनहित याचिका और कार्यकर्ताओं और वकीलों की ओर से दायर कई अन्य हस्तक्षेप याचिकाओं पर 15 अक्टूबर को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। याचिकाओं में दलील दी गयी थी कि उत्तर प्रदेश में निष्पक्ष सुनवाई संभव नहीं है, क्योंकि कथित तौर पर जांच बाधित की गयी।
पीड़ित परिवार की ओर से पेश वकील ने उच्चतम न्यायालय को बताया था कि इस मामले में जांच पूरी होने के बाद सुनवाई को उत्तर प्रदेश के बाहर राष्ट्रीय राजधानी में स्थानांतरित कर दिया जाए। दरअसल, 15 अक्टूबर को जब सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रखा था, तब यह संकेत दिया था कि मामला हाईकोर्ट भेजा जा सकता है। कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया था कि इस मामले से संबंधित और याचिकाओं पर सुनवाई नहीं होगी।
गांव की सीमा के साथ जगह-जगह सीसीटीवी कैमरे भी लगाए गए हैं
कोर्ट ने कहा कि पहले हाईकोर्ट को सुनवाई करने दें, फिर हम यहां से नजर रख सकते हैं। इससे पहले राज्य सरकार की ओर से उच्चतम न्यायालय के समक्ष दायर ताजा हलफनामा में कहा गया था कि पीड़ित परिवार और गवाहों को तीन स्तरीय सुरक्षा दी गई है, इसके लिए पुलिस और अन्य सुरक्षाकर्मी तैनात किए गए हैं। साथ ही गांव की सीमा के साथ जगह-जगह सीसीटीवी कैमरे भी लगाए गए हैं।
उत्तर प्रदेश सरकार ने कहा है कि पीड़िता (19) के हाथरस जिले के चंदपा में रहने वाले परिजनों को पयार्प्त सुरक्षा दी जा रही है। इन परिजनों में पीड़ता के माता-पिता के अलावा दो भाई, एक भाभी और दादी शामिल हैं। उत्तर प्रदेश के हाथरस जिले में चार सवर्णों ने 19 वर्षीय दलित युवती के साथ कथित तौर पर सामूहिक दुष्कर्म किया था।
उपचार के दौरान दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में 29 सितंबर को लड़की की मौत हो गई। उच्चतम न्यायालय में सुनवाई के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह ने उत्तर प्रदेश में मामले की निष्पक्ष सुनवाई नहीं होने की आशंका प्रकट की थी।