बिहार , झारखंड, बंगाल, उड़ीसा तथा छत्तीसगढ़ के आदिवासी इलाकों में बिरसा मुंडा को भगवान की तरह पूजा जाता हैं. आज ही के दिन 1900 में हैजे के कारण उनकी मौत हो गई. आज का दिन शहादत दिवस के रुप में मनाया जाता हैं.
बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवंबर 1874 को चालकद ग्राम में हुआ. बिरसा मुंडा का पैतृक गांव उलिहातु था. इनके जन्म स्थान को लेकर इतिहासकारों में मतभेद है कि उनका जन्म स्थान चालकद है या उलिहातु. उन्होंने अंग्रेजी शोषण नीति और असहाय लोगों को प्रतंत्रता से मुक्त कराने में अपनी शक्ति और सामर्थ के अनुसार योगदान दिया. हमारे देश को स्वतंत्र कराने के लिए तो ढ़ेर सारे महापुरूषों ने बलिदान दिया किंतु बिरसा मुंडा ने आदिवासियों में जो क्रांति की अलख जगाने का कार्य किया वो हमेशा याद किया जाएगा. ‘भगवान बिरसा मुंडा’ ने नारा दिया ‘अबुआ: दिशोम रे अबुआ: राज’ अर्थात हमारे देश में हमारा शासन का नारा देकर भारत वर्ष के छोटानागपुर(झारखण्ड) क्षेत्र से आदिवासीयों में क्रांति की अलख जगाने का कार्य किया. आदिवासी नेता भगवान बिरसा मुंडा ने अंग्रेजों की हुकुमत के साथ- साथ लोगों में धर्म का भी अलख जगाने का कार्य किया. यहीं कारण हैं कि उन्हें भगवान की तरह पूजा जाता हैं.
अंग्रेजों के खिलाफ ‘उलगुलान’ अर्थात क्रांति की बिगुल फूंक दिया जिसके कारण उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और भगवान बिरसा मुंडा ने अपनी अन्तिम साँसें 9 जून 1900 को राँची कारागार में लीं.
बिरसा मुण्डा की समाधि राँची में कोकर के निकट डिस्टिलरी पुल के पास स्थित है. वहीं उनका स्टेच्यू भी लगा है. उनकी स्मृति में रांची में बिरसा मुण्डा केन्द्रीय कारागार तथा बिरसा मुंडा अंतरराष्ट्रीय विमानक्षेत्र भी है.
अद्भुत प्रतिभा के धनी देश के महान वीर सपूत भगवान बिरसा मुंडा जिन्होंने ने आजादी के साथ-साथ आदिवासियों के लिए समाजिक क्रांति भी लाया. उन्हें अपना न्यूज अपने पूरे परिवार की तरफ से देश के महान सपूत को नमन करता हैं और उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करता हैं.