ऐसे वक्त में अनेकों नागरिक समूह उनके राहत-बचाव के लिए प्रयास कर रही है। ऐसा ही एक समूह है युवाओं की एक गैरराजनीतिक संस्था ‘मिथिला स्टूडेंट यूनियन (MSU)’। ये संस्था मिथिला क्षेत्र में पिछले पांच सालों से क्षेत्र और छात्र के लिए काम कर रही है और इनके पास हजारों की संख्या में एक्टिव वोलंटियर है। 2017 के बाढ़ में भी इनकी टीम ने कमाल का काम किया था, कुछ दिनों पहले मुज़फ़्फ़रपुर के चमकी-बुखार सम्बन्धित मेडिकल आपदा के वक्त भी इनके टीम के लगभग 100 युवा आसपास के गांवों में मेडिकल कैम्प, जागरूकता, भोजन-दवाई के माध्यम से राहत पहुंचा रहे थे।
अभी के बिहार बाढ़ में इनकी टीम फिर से पूर्णरूपेण एक्टिव हो चुकी है। लगभग 300 के करीब युवा कार्यकर्ता आसपास के जिलों में बाढ़ प्रभावित गांवों तक पहुंच रहे हैं। भोजन-पानी-मेडिकल सपोर्ट उपलब्ध करवा रहे हैं। विस्थापितों को भोजन उपलब्ध करवाने के लिए इन्होंने अनेकों जगह बेस कैंप लगाया है, जहाँ भोजन बनाकर सुदूर गांवों तक भी इनके वोलंटियर पहुंचा रहे हैं।
अबतक ये सारा काम ये लोग गांवों-बाजारों में माँग कर या भिक्षाटन के माध्यम से सामान इकट्ठा करके कर रहे हैं। सोशल मीडिया पर चंदा मांगकर राहत अभियान के आर्थिक जरूरतों को पूरा कर रहे हैं। लेकिन इनके अधिकतर कार्यकर्ता छात्र एवं युवा हैं इसलिए आर्थिक स्तर पर ये कमजोड पड़ते हैं। पर्याप्त से भी अधिक जनबल होने के बावजूद धनबल का अभाव इन्हें झेलना पड़ रहा है। लेकिन इस सबके बावजूद ये सब लगे हुए हैं। सोशल मीडिया पर डोनेशन अपील किया जा रहा है और लोग सामान-पैसा भेज रहे हैं। इनके पिछले पांच सालों में किए कामों व अनेक अभियानों में बरती गई ट्रांसपैरेंसी के कारण इन्हें लोगों का जो विश्वास हासिल है उसके कारण बहुत बढ़िया सपोर्ट मिल रहा है। हरेक कार्यक्रम या अभियान के बाद पूर्ण आमदनी-खर्चे के हिसाब को पब्लिक करने की इनकी परम्परा से आर्थिक ट्रांसपैरेंसी में इनकी छवि काफी सकारात्मक है।
बाढ़ भयावह है। लोग दुखी हैं। लेकिन पीला टीशर्ट पहने और ‘सेनानी’ कहलाने वाले ये MSU कार्यकर्ता हमेशा की तरह फिर से मिथिला में उम्मीद बनकर उभरे हैं।