वशिष्ठ नारायण सिंह, एक ऐसा नाम जिसको जबरदस्ती गुमनामी की तरफ धकेल दिया गया। बिहार के भोजपुर जिले के बसंतपुर में पैदा हुए डॉक्टर वशिष्ठ नारायण सिंह पेशे से एक गणितज्ञ है। और गणित मे उनका योगदान सराहनीय है। बतौर अध्यापक और प्राध्यापक उन्होंने गणित में काफी सारा योगदान दिया। काफी सारा अनुसंधान गणित पर किया। पर आज एक गुमनामी का जीवन व्यतीत कर रहे हैं।
आज पूरी तरह मानसिक बीमारी से ग्रसित डॉक्टर वशिष्ठ नारायण सिंह अपने ही गांव में गुमनाम जीवन बसर कर रहे हैं। भूमिहार जाति के वशिष्ठ नारायण सिंह का जन्म 2 अप्रैल 1942 को भोजपुर के बसंतपुर में हुआ था।
उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा और माध्यमिक शिक्षा नेतरहाट आवासीय विद्यालय में प्राप्त किया। वह मैट्रिक और इंटर मीडिएट दोनों कक्षाओं में बिहार टॉपर रहे। इसके बाद आगे की पढ़ाई के लिए उन्होंने पटना साइंस कॉलेज ज्वाइन किया। बीएससी के दौरान ही उनको एक व्यक्ति मिला। जिनका नाम था जॉन ले केले, जॉन ले केले भी पेशे से एक गणितज्ञ थे। जब उन्होंने डॉक्टर साहब के गणित के कला को देखा तो वह काफी प्रभावित हुए। और उनको अमेरिका आकर अनुसंधान करने का न्योता दिया।
तत्पश्चात वहां गए और नासा ज्वाइन किया। NASA में उन्होंने काफी सारा अनुसंधान का कार्य किया। इस दौरान कि एक वृतांत है कि, जब अपोलो के लॉन्चिंग के समय नासा में उपस्थित बहुत सारे कंप्यूटर खराब हो गए, तब डॉक्टर साहब के मस्तिष्क द्वारा किए गए कैलकुलेशन के द्वारा ही अपोलो का लॉन्चिंग सफलतापूर्वक किया गया। इसके बाद NASA को छोड़ भारत आए।
यहां आकर उन्होंने 1971 में आईआईटी कानपुर ज्वाइन किया, जहां पठन पाठन किए। 8 महीने की इस छोटी अवधि के बाद वे t i f r Bombay ज्वाइन किए। इसके बाद उन्होंने 1973 में भारतीय सांख्यिकी केंद्र ज्वाइन किया। जो कि कोलकाता में है।
1974 में इनकी शादी हो गई।उसके बाद इनको एक मानसिक बीमारी हुआ। जिसका नाम है सि जो फ्रेनिया। इस बीमारी के कारण वे खींचे खींचे रहने लगे। तथा उनकी वाइफ उनको छोड़ दि। वे उसके बाद अकेला ही जीवन यापन करते रहे हैं। 2014 में डॉक्टर साहब को भूपेंद्र नारायण मंडल यूनिवर्सिटी, मधेपुरा में बतौर विजिटिंग प्रोफेसर एक गेस्ट फैकल्टी दिया गया।
अभी भी जब डॉक्टर साहब से बातें की जाती है तो वह बताते हैं कि, उनके द्वारा किए गए कार्यों को बहुत सारे लोगों ने अपना नाम देकर प्रकाशित करवाया है। उनके ढेर सारे अनुसंधान आज भी उनकी याद में है कि बहुत बड़े बड़े व्यक्ति अपने प्रभाव के कारण या फिर दबाव के कारण उनका कार्य अपने नाम से छपवाया तथा काफी सारा दौलत और शोहरत पाया।
पर इस बिहार के लाल को आज भी बदनसीबी के सिवा कुछ हासिल नहीं हुआ। ना ही शोहरत मिल पाया और ना ही दौलत। घरवाले तो इनके साथ नहीं रहे पर यह देश वाले भी इनको भूल गए? बिहार सरकार भी इनकी उपलब्धियों को भूल गयी? जिस व्यक्ति के कारण पूरा देश गौरव महसूस करता रहा अपने आप पर, आज उसको ही गुमनामी में धकेल दिया गया है। आज वे 77 साल के हो गए हैं पर फिर भी मानसिक बीमारी से ग्रसित एक साधारण सा बुड्ढे की भांति जीते है।