आए दिनों ‘एक राष्ट्र एक चुनाव’ का मुद्दा काफी जोर-शोर से देश में उछाला जा रहा है। मीडिया में काफी इसकी चर्चा हो रही है। सरकार भी काफी इस पर बोल रहे हैं ।सरकार के लोगों द्वारा काफी वक्तव्य दिए जा रहे हैं। एक राष्ट्र एक चुनाव भारत जैसे अर्थव्यवस्था वाले देश के लिए उपयुक्त है ऐसा मेरा मानना है।
इससे पहले 2014 में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार बनते हैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा यही घोषणा की गई थी कि इस बार एक राष्ट्र एक चुनाव को लागू कर दिया जाएगा। पर धीरे-धीरे दिन गुजरते गए और सरकार की यह घोषणा सिर्फ घोषणा बनकर रह गई। इस पर कोई अमल नहीं दिखा कि सरकार इस योजना को लागू कर रही हो।
हालांकि जब 2019 में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार एक बार फिर बनी तो एक बार फिर इस मुद्दे को गर्म किया गया। इस बार सिर्फ मुद्दा ही नहीं जोर-शोर से उठाया गया, बल्कि इस पर अमल करना भी शुरू कर दिया गया है। इस पर त्वरित कार्रवाई करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक सर्वदलीय बैठक बुलाए थे जिसमें लगभग 40 दलों को आमंत्रित किया गया। ताकि आए और इस पर बहस करें। कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, सपा, बसपा जैसे कई पार्टियों ने इस मीटिंग का बहिष्कार कर दिया। पर टीआरएस, माकपा, भाकपा, बीजेडी, वाईएसआर कांग्रेस, जदयू जैसे लगभग 21 पार्टियों ने इस मीटिंग में शामिल होकर अपना समर्थन दिया या फिर इस पर विरोध जताया।
कुछ पार्टियों का मानना है कि एक राष्ट्र एक चुनाव सही योजना है पर सरकार को इसमें कुछ सुधार करना है।हालांकि कांग्रेस की नजरिए से देखा जाए तो कांग्रेस मानती है कि अगर एक राष्ट्रीय चुनाव जैसी योजना लागू हो जा रही है तो इससे केंद्र में सत्तासीन पार्टी को ही सिर्फ फायदा होगा। बाकी क्षेत्रीय पार्टियों को और अपोजिशन के पार्टी को काफी नुकसान उठाना पड़ेगा पर ऐसा संभव नहीं दिख रहा। क्योंकि हाल ही 2019 में हुए लोकसभा चुनाव के साथ-साथ विधानसभा चुनाव की परिणाम पर अगर ध्यान दिया जाए इससे साफ जाहिर हो रहा है कि राष्ट्र एक चुनाव किसी भी तरह से जनता के जनादेश पर असर नहीं डालती।
मीटिंग के समाप्ति के बाद रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने प्रेस वार्ता कर जानकारी दी कि एक राष्ट्र एक चुनाव के मुद्दे पर प्रधानमंत्री एक पैनल का गठन करेंगे जो इससे जुड़ी हर जानकारी प्रधानमंत्री कार्यालय को मुहैया कराएगी।