क्या सिर्फ पद्मश्री दे देने से सरकार की जिम्मेदारियां खत्म हो जाती है, कहानी झारखंड के साइमन आँड़ान की

यह कहानी झारखंड के पद्मश्री अवार्ड विजेता साइमन आँरान की है।

उनको झारखंड में स्थानीय स्तर पर झारखंड का दशरथ मांझी कहा जाता है। उनकी भी कहानी दशरथ माँझी की तरह किसी फिल्मी पटकथा से कम नहीं लगती।

साइमन आँड़ान एक ऐसे व्यक्ति हैं जो किसी पहचान के मोहताज नहीं है। उन्होंने कई सारे नहरे बनाएं खुद के दम पर। तथा कई सारे पहाड़ों को काटकर 3-3 बांधे बनवाएं। ताकि उनके इलाके में पानी की कमी ना हो। और इन्हीं वजहों से उनको वाटर मैन के नाम से भी जाना जाता है।

उनको पर्यावरण संरक्षण एवं वर्षा जल संचयन के क्षेत्र में बेहतर काम करने के एवज में पद्मश्री अवार्ड दिया गया था। वह अभी 84 वर्ष के हो चुके हैं। यह उनकी मेहनत का नतीजा है कि आज ना सिर्फ उनका गांव बल्कि आस-पास के गांव में पानी की कमी बिल्कुल नहीं है। सिर्फ पानी की कमी ही नहीं बल्कि उनके और आसपास के गांव के लोग सब्जी और अनाज उगाकर दूसरे जिलों में भी भेजा करते हैं। यह सारी बातें उनकी संघर्ष की है।

अभी का हाल बेहद दुखद  महसूस करने वाली वाक्या होगा। कैसे एक व्यक्ति जिसको पद्मश्री अवार्ड मिला हुआ है। फिर भी वह कर्ज में डूबा है। ना खाने को सही से रोटी है ना रहने को मकान है। नाम के लिए बस सिर्फ पद्मश्री विजेता कहलाएंगे।

इससे अच्छा होता कि वह प्राइवेट काम में लगे होते और काम करते करते बुड्ढे हो गए होते। तो कम से कम उनके पास उनकी जमा पूंजी होती। ताकि वह अपना बुढ़ापा आराम से गुजार सके। बल्की उन्होंने इस देश के लिए, इस देश के लोगों के लिए काम किया। और इसका परिणाम उनको मिल रहा है।

कई राज्यों के राज्य सरकारों द्वारा पद्मश्री अवार्ड विजेता को बहुत सारे मेडिकल सुविधाएं दी जाती है, तथा अन्य बहुत सारी सुविधाएं दी जाती है। पर उनको इन सारी सुविधाओं से वंचित कर दिया गया है।

वह कभी कभी दुखी होकर कहते हैं कि काश मुझे इस पद्मश्री अवार्ड की जगह लाल कार्ड मिल गया होता! कम से कम भूखा तो ना रहना पड़ता।।।।

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